🖊️ लेखक: CryptoBuzz लेखक टीम | प्रकाशित: 22 जुलाई 2025 | समय: 11:00 AM
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते पर समयसीमा नज़दीक है लेकिन वार्ता टकराव की ओर। जानिए इसका भारत पर क्या असर हो सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर 1 अगस्त 2025 की डेडलाइन से पहले कोई ठोस नतीजा निकलने की संभावना अब बेहद कम नज़र आ रही है। ट्रंप प्रशासन व्यापार समझौतों की गुणवत्ता को प्राथमिकता दे रहा है और वह समयसीमा को द्वितीयक मान रहा है। इसका मतलब है कि अमेरिका जल्दबाजी में कोई डील करने के मूड में नहीं है, भले ही इसके लिए समय-सीमा को आगे बढ़ाना पड़े।
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर 1 अगस्त तक समझौता नहीं हुआ, तो अमेरिका टैरिफ फिर से लागू करेगा। इस टैरिफ दबाव के ज़रिए अमेरिका दूसरे देशों को अपनी शर्तों पर समझौता करने के लिए मजबूर करना चाहता है। यह नीति भारत जैसे विकासशील देशों के लिए खास तौर पर चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इससे उनके निर्यात पर सीधा असर पड़ता है।
भारत और अमेरिका के बीच मार्च 2025 से अब तक पांच दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कई प्रमुख मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई है। सूत्रों का कहना है कि बातचीत मुख्य रूप से कृषि उत्पादों की बाजार पहुंच, फार्मास्युटिकल पेटेंट और डेटा लोकलाइज़ेशन जैसे मुद्दों पर अटकी हुई है। भारत के वार्ताकार हाल ही में वाशिंगटन से लौटे हैं और उनका मानना है कि इस समय डील होना मुश्किल दिख रहा है।
अमेरिका की व्यापार नीति केवल भारत तक सीमित नहीं है। यूरोपीय संघ (ईयू), जापान और चीन के साथ भी अमेरिका की व्यापारिक बातचीत में अड़चनें हैं।
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट ने बताया कि अमेरिका फिलीपींस के साथ भी डील की योजना बना रहा है और जल्द ही अन्य घोषणाएं भी हो सकती हैं, जिससे वैश्विक व्यापार परिदृश्य में और अस्थिरता आ सकती है।
अगर 1 अगस्त से अमेरिकी टैरिफ दोबारा लागू होते हैं, तो इसका सीधा असर भारतीय निर्यात पर पड़ेगा। भारत को अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इससे कृषि, टेक्सटाइल और फार्मा जैसे क्षेत्रों में बड़ा झटका लग सकता है, जो अमेरिकी बाजारों पर काफी निर्भर करते हैं।
भारत को अपने व्यापारिक हितों की रक्षा करते हुए अमेरिका के साथ संतुलन बनाना होगा, ताकि घरेलू उद्योग प्रभावित न हों और दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध भी कायम रहें। यह भारत के लिए अपनी निर्यात रणनीति को पुनर्गठित करने और नए बाजारों की तलाश करने का एक अवसर भी हो सकता है।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की डेडलाइन भले ही नज़दीक हो, लेकिन ट्रंप प्रशासन की प्राथमिकता गुणवत्ता पर टिकी है, न कि समयसीमा पर। भारत सहित अन्य देशों को अब अमेरिका के टैरिफ दबाव और कठोर शर्तों के बीच संतुलन बनाना होगा। यह दौर वैश्विक व्यापार में अनिश्चितताओं और जटिलताओं का प्रतीक बन गया है, जहां हर देश को सावधानीपूर्वक और रणनीतिक तरीके से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
Q1. भारत और अमेरिका के बीच व्यापार डील में देरी क्यों हो रही है?
उत्तर: ट्रंप प्रशासन व्यापार समझौतों की गुणवत्ता को समयसीमा से अधिक महत्व दे रहा है। साथ ही, कृषि, फार्मा और डेटा जैसे कई मुद्दों पर मतभेद बने हुए हैं, जिससे बातचीत आगे नहीं बढ़ पा रही है।
Q2. 1 अगस्त 2025 की डेडलाइन क्यों अहम है?
उत्तर: 1 अगस्त तक डील न होने की स्थिति में अमेरिका फिर से उच्च टैरिफ लागू कर सकता है, जिससे भारत जैसे देशों के निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
Q3. क्या अमेरिका टैरिफ का इस्तेमाल दबाव के हथियार के रूप में कर रहा है?
उत्तर: जी हां, अमेरिका अन्य देशों को अपनी शर्तों पर समझौता करने के लिए टैरिफ को रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है, जिससे भारत, ईयू और जापान पर दबाव बढ़ रहा है।
Q4. भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर: उच्च अमेरिकी टैरिफ से भारत के निर्यात क्षेत्रों जैसे कृषि, टेक्सटाइल और फार्मा को नुकसान हो सकता है। भारत को रणनीतिक रूप से संतुलन बनाकर अपने आर्थिक हितों की रक्षा करनी होगी।
Q5. क्या केवल भारत ही इस टैरिफ नीति से प्रभावित है?
उत्तर: नहीं, अमेरिका की टैरिफ नीति से यूरोपीय संघ, जापान और चीन जैसे बड़े देश भी प्रभावित हैं। ईयू ‘एंटी-कोएर्शन’ उपायों पर विचार कर रहा है और जापान में भी राजनीतिक असंतोष देखा जा रहा है।
Q6. आगे भारत को क्या रणनीति अपनानी चाहिए?
उत्तर: भारत को अमेरिका के साथ संतुलित और रणनीतिक वार्ता करनी चाहिए, साथ ही निर्यात के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी चाहिए ताकि किसी एक देश पर निर्भरता न रहे।
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